गन्ने के जूस निकालने वाली मशीन की तरह है वर्तमान की शिक्षा व्यवस्था ! ऐसा इसीलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि प्रथम दृष्टिकोण में ये इसी से मेल खाता हुआ दिखाई दे रहे है ! चित्र में अंकित गन्ने का जूस निकालने वाली मशीन मैक्ले द्वारा स्थापित अंग्रेजी शिक्षा-व्यवस्था का नमूना है जिसे हमने ३ नम्बर से चिन्हित किया है ! गन्ना जिसे १ नम्बर से चिन्हित किया है वो हमारी तरह विद्यार्थी गण है य फिर वो लोग है जिन्हें इस शिक्षा व्यवस्था से शिक्षा-ग्रहण करनी होती है ! जूस निकालने वाला जो व्यक्ति है उसे २ नम्बर से चिन्हित किया गया है जिसकी तुलना हमने अभिभावक,शिक्षक और माहौल से की है ! गन्ने के जूस को ५ नम्बर से चिन्हित किया गया है जिसका सम्बोधन भारत में पढ़ चुके अंग्रेजी शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र-छात्राओ से है ! गन्ने के जूस को जिसमे एकत्रित किया जा रहे है उसे ४ नम्बर से चिन्हित किया गया है जिसका सम्बोधन बढ़ी कम्पनी,विदेशी कम्पनी और वो लोग है जो हमारे भारत के विद्यार्थियों के ज्ञान का इस्तेमाल अपने हितो के लिए करते है ! और छन्नी का काम जूस और गन्ने को अलग करना है जिसका सम्बोधन उन छात्र-छात्राओ के भारतीयता और ज्ञान को अलग अलग करने से है !
अब इसे बेहतर तरीके से विस्तार पूर्वक समझते है !
बात करते है एक आम नागरिक य सामान्य परिवार से जो अपने बच्चे को शिक्षा देने के लिए उत्सुक है ! और वो अपने बच्चे का दाखिला अंग्रेजी माध्यमिक स्कूल में करवा देता है ! बच्चे चार कक्षा तक तो उत्तीर्ण होते है फिर बाद में उन बच्चो को दबाव के साथ पढ़ता हुआ देखा जाता है !
एक अध्ययन में जो बाते सामने आई वो कुछ इस प्रकार है !
पढ़ने के विषय में बढ़ोत्तरी हुयी, परिणाम स्वरूप छात्र-छात्राओ का ध्यान प्रति विषय पर समय के हिसाब से कम हो गया और इससे बच्चो में चिढ़चिढ़ापन देखने को मिलने लगा और वे तनाव ग्रस्त हो गये !
स्कूल डिपार्टमेंट का ज्यादा ध्यान टाई,बेल्ट,आई-कार्ड,जूते,मोज़े,किताब,कॉपी पे जाने लगा पर बच्चे के बौद्धिक विकास को बढाने के लिए कभी गम्भीरता से ध्यान इस पर नही दिया !
गरीब वर्ग के बच्चो को फीस के लिए वहां के टीचर और प्रिंसिपल से अपमानित होना पड़ता है जिसका प्रभाव उनके मन-मस्तिष्क पर काफी बुरा पड़ता था ! बच्चे ऐसे अपने माँ-बाप के प्रति घृणा की दृष्टि से देखते कि क्यों उन्हें पढ़ाया जा रहा है और अगर पढ़ा रहे है तो समय पे फीस क्यों नही देते ! उनका पढाई से फिर लगाव अब ऐसे में कम हो जाता है
कमजोर बच्चो का टीचर और उसके सहपाठियों द्वारा मजाक बनाना ! अक्सर देखा गया है कि टीचर ने फलाना गृहकार्य नही करने पर कठोर सजा दी जिसका बच्चे पर असर इतना भयावह हो जाता है कि बच्चा स्कूल के नाम पर ही घबराने लगता है ! और सहपाठियों द्वारा उन बच्चो को ज्यादा परेशान किया जाता है जो मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर हो !
जो विषय पढ़ने के लिए दिए है उस विषय की कॉपी को रंग-बिरंगे कवर से मात्र सजना कई टीचर की प्राथमिकता होती है पर उन विषयों में बच्चो को पारंगत करना ऐसा वो सोचते भी नही ! कुछ टीचर खुद पढ़े-लिखे नही होते और छोटे स्कूल में भाड़े पे काम करने वाले लोगो को ही टीचर बना दिया जाता है जिसका दुष्परिणाम ये होता है कि बच्चे उनके संग में अपना भविष्य अपने हाथो बर्बाद कर रहे होते है ! अगर कोई बच्चा अपने प्रश्न लेकर जाये तो तारिक पे तारिक मिलती य छिपकर मैंम जी का nd की बुक से समाधान देखना होता !
छोटे स्कूल में आज बिना किसी ठोस परिक्षण के शिक्षक रख लिए जाते है जो सिर्फ पैसे कमाने के लिए आये होते है ! ऐसे शिक्षक का काम केवल अपना काम निकालना और कोई उससे अच्छा सुविधाजनक जॉब य नौकरी मिल जाये तो शिक्षक की नौकरी छोड़ जाना ही होता है जिससे बच्चो की पढाई प्रभावित होती है
कई बार देखा गया है कि स्कूल के टीचर अपने बच्चो को ही उस विषय का tution लेने के लिए सबको बाध्य करते है जो शिक्षक-शिक्षिका उन्हें पढ़ा रहे होते है ! और जब कोई बच्चा अन्य किसी टीचर पर tution पढ़ रहा होता है तो उस टीचर द्वारा नजरंदाज का ऐसे बच्चे शिकार बनते है ! जिससे य तो वो बच्चा उसी टीचर से tution लेने के लिए मजबूर हो जाता है य दूसरे टीचर से tution छोड़ने पर !
स्कूल की फीस तो होती ही है अधिक जिसे कई माता-पिता देने में लाचारी और कष्ट का अनुभव करते है पर एनुअल परीक्षा की फीस और उसमे परीक्षा फीस ऐसे लेते है जैसे देशसेवा करने के लिए चंदा मांग रहे हो ! फीस देने के उपरांत भी इन प्राइवेट स्कूल की हवस की भूख शांत नही होती ! अगर माता-पिता खुद अधायपक हो और वो अपने बच्चे को पढाये तो बच्चा जरुर एक नेकदिल और सामाजिक बालक और किसी उच्च पद पर कार्यरत होगा पर यहाँ शहरों में किराये के मकान में रह रह कर अपनी खून-पसीनो की कमाई को १२ कक्षा की पढ़ाई तक खर्च करने के उपरांत कई बच्चे ऐसे मूर्ख रहते है जितना वो स्कूल में पढ़ने से पहले भी नही थे ! और उतना धन वो बच्चे को किसी कौशल शिक्षा में देते तो वो इतना योग्य बन जाता कि अपने माता-पिता का भलन-पोषण कर देता !
आज स्कूल में कमियाँ तो बहुत होती है पर फीस तो इतना जमकर लेते है कि जैसे आपको सारी सुख सुविधाए प्राप्त हो ! कई छोटे प्राइवेट स्कूल में बेंच भी ढंग की नही होती तो कहीं पे शौचालय के दरवाजे भी टूटे होते है य खुद शौचालय की स्थिति शौच से भी बदत्तर होती है !
८ बजे से लेकर २ बजे तक बच्चो का स्कूल में समय व्यतीत होता है उसके बाद घर आकर उन्हें वही पढाई से सम्बन्धित काम करने होते है ! और खाना-पीना और आराम करना ! शारीरिक क्रियाकलाप भी जरूरी है ! जब कुछ समय बचता है तो घर पर चलता है टीवी जिसे वो खुद के लालच से य घर के दबाव से मना नही कर पाते और उसकी एकाग्रता जो पढ़ने में होती है वो भंग हो रही होती है तो परिणाम स्वरूप बच्चे पढाई नही कर पाते !
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