होली का बदलता रंग : उत्सव से उपद्रव तक | एक सामाजिक संदेश | स्वदेशी क्रांतिकारी

 

होली का बदलता रंग : उत्सव से उपद्रव तक | एक सामाजिक संदेश | स्वदेशी क्रांतिकारी


नमस्कार दोस्तों,

आज मैं आपसे दिल की कुछ बातें साझा करना चाहता हूँ। कई बार मन बिना वजह उदास हो जाता है। असल में कारण एक ही होता है- दिल का कोमल होना। जो लोग हर किसी में अपनापन ढूँढते हैं, वे छोटी-सी बात से भी आहत हो जाते हैं। जब मन उदास हो तो यादें भी चुभती हैं और त्योहारों की खुशी फीकी लगती है।

कल मैं दिल्ली के लक्ष्मी नगर मेट्रो स्टेशन गया। वहाँ एक घटना ने सोचने पर मजबूर कर दिया। शौचालय के पास कुछ युवक खड़े होकर गालियाँ दे रहे थे और गुज़रती महिलाओं पर पानी के गुब्बारे फेंक रहे थे। जब शिकायत की तो सुरक्षा कर्मियों ने कहा- “ये हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।” यह सिर्फ़ एक जगह की बात नहीं, बल्कि अधिकांश क्षेत्र में ऐसा ही हो रहा है ! 

होली का बदलता स्वरूप

होली असत्य पर सत्य और अधर्म पर धर्म की विजय का पर्व है। पहले इसे सामाजिक मेल-मिलाप और क्षमा का प्रतीक माना जाता था। लोग आपसी रंजिश भूलकर नए रिश्तों की शुरुआत करते थे। पर आज कई जगह यह डर का कारण बन रहा है।

  • रंगों में खतरनाक केमिकल, नालियों का गंदा पानी या तेज़ाब मिलाना।
  • शराब पीकर उपद्रव मचाना, गाली-गलौज करना।
  • महिलाओं के साथ अभद्रता और छेड़छाड़।
त्योहार का मक़सद खुशी है, किसी की अस्मिता को ठेस पहुँचाना नहीं।

मर्यादित और संवेदनशील होली

त्योहार तभी सुंदर लगते हैं जब उनमें संयम और संवेदना हो। हमें सोचना होगा -
  • क्या हमारे इलाके में पानी की स्थिति ऐसी है कि हम बाल्टी-बाल्टी पानी बर्बाद करें?
  • क्या हम सड़क पर चलते किसी अनजान व्यक्ति के कपड़े गंदे करने या उसकी आँखों को नुकसान पहुँचाने का हक़ रखते हैं?
  • क्या होली का मतलब केवल दोस्तों के साथ रंग खेलना है, या रिश्तों में नई शुरुआत करना भी?
होली का असली उद्देश्य है रिश्तों को जोड़ना, मन के बैर को मिटाना और समाज में प्रेम व सामंजस्य फैलाना।

सनातन संस्कृति का संदेश

मैं सनातनी हूँ और मानता हूँ कि अपने घर की गलतियों को स्वीकार करना ही सच्ची धर्मपरायणता है। हमें देखना होगा कि कौन-सी परंपराएँ समय के साथ बिगड़ गई हैं। अंधी भीड़ का हिस्सा बनने के बजाय हमें क्यों (Why factor) पूछना चाहिए- क्यों ये हो रहा है, क्यों हम चुप हैं?

एक नई सोच की ओर

आइए हम मिलकर संकल्प लें-

  • होली पर नशे और हिंसा को ‘ना’ कहेंगे।
  • संयमित और स्वच्छ उत्सव मनाएँगे।
  • बच्चों और युवाओं को संस्कार देंगे कि रंग प्रेम का हो, डर का नहीं।

जब हम अपने घर, मोहल्ले, और शहर में यह उदाहरण पेश करेंगे, तभी असली रंगों वाली होली होगी- जहाँ हर दिल में अपनापन हो और हर दिन त्योहार जैसा लगे।

प्रेम और सद्भाव ही सच्ची होली है।
आप सभी को मर्यादित, सुरक्षित और आनंदमय होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।

राम राम।



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